Saturday, July 30, 2016




सन चौरासी - काला अध्याय 

सन चौरासी से पहले ,
पंच - प्यारों की धरती पर ,
प्यार - मुहब्बत की नगरी में ,
गूंजा नारा खालिस्तान का । 
कौन हिन्दू , मुस्लिम , सिख , ईसाई 
परेशान थी बस सारी जनता ,
बिन जाने कौन किस मज़हब का ,
अलगांववाद था भारी सब पर। 
टुकड़े हो भारत माँ के अब ,
हर तरफ़ बस यही था नारा ,
जाने किसके हिस्से में क्या हो ,
यही आग थी सीने में बस। 
किसने जलाई चिंगारी ,
किसने सुलगाई आग ,
न तुमको पता , न मुझको पता 
धधकी अंदर दिल में बरसों। 
लावा बन विस्फ़ोट हुआ तब ,
सन चौरासी आया जब ,
काला अध्याय वो लाया संग। 
हुकूमत का जो क़त्ल हुआ तब ,
भारी पड़ गया कौम पर सारी। 
जाने कितने घर जले ,
न जाने कितनी बेवा हुई ,
जाने कितने बचपन छीन गये ,
न जाने कितने गबरू सो गये 
मौत के आगोश में। 
नफरतों के साये में 
अक्सर पलते हैं दहशतगर्द। 
हजारों जानें चली गई 
मौत की काली आँधी में। 
रंजिश की तलवारें खींच गई ,
कोई कहता नफ़रत थी वो ,
कोई कहता वक़्ती - गुबार ,
इंसानियत पर कहर था वो। 
मानवता का अंत था वो। 
न कोई धर्म था वहां 
न ही कोई कौम 
बस फैले थे दहशतगर्द। 
और फैली थी बस लाशें। 
मरता था हर रोज़ वहां 
कभी तेरी आँखो का पानी 
और 
कभी मेरी आँखो का पानी। 
हालात तब भी यही थे 
हालात अब भी वही है 
क्या बदला है बरसों में। 
नफ़रत तब भी पोषित थी ,
नफ़रत अब भी पलती है ,
कभी तेरे दर पर 
तो 
कभी मेरे दर पर। 
ये बस वक़्ती - जुनून कहलाता 
आज है , कल न भी हो 
या फिर 
न ही कोई अंत हो। 
इंतज़ार फिर से एक मसीहा का 
करना होगा हम सब को। 
वो राम भी हो सकता है 
और रहीम भी 
नानक भी हो सकता है 
और क्राइस्ट ( ईसा ) भी। 
हम और तुम नहीं हो सकते है ,
जहां पलती नफ़रत सीने में। 
उम्मीद का दामन थामे बस 
आज़ भी खड़े दौराहे पर 
पीढ़ी - दर - पीढ़ी। 
विस्फ़ोटक है शब्द मेरे ,
लेकिन अमन का है ये पैग़ाम ,
आम जन के जीवन में अब ,
न हो कोई काला अध्याय।। 

Monday, March 29, 2010

जब तक लौट न आऊ मै..................

जब तक लौट न आऊ मै..................


छोड़ आई मै ,रूह को अपनी , पास तेरे
छोड़ आई मै, निंदिया अपनी, दर पे तेरे
तू रखना, रूह को मेरी सलामत
जब तक वापिस न आऊ मै !!!!
तू रखना, निंदिया को मेरी सलामत
जब तक लौट न आऊ मै !!!!
छोड़ आई मै, मुस्कान को अपनी, पास तेरे
छोड़ आई मै, बेफिक्री अपनी, दर पे तेरे
तू रखना, मुस्कान को मेरी सलामत
जब तक लौट न आऊ मै !!!!
तू रखना, बेफिक्री को मेरी सलामत
जब तक लौट न आऊ मै !!!!
छोड़ आई मै, कदमो को अपने , दर पर तेरे
छोड़ आई मै, सपनो को अपने, नैनों में तेरे
तू रखना, पहचान मेरी सलामत
जब तक लौट न आऊ मै !!!!
तू रखना, सपनो को मेरे सलामत
जब तक लौट न आऊ मै !!!!

मंजु चौधरी

Wednesday, March 24, 2010

बिन बादल बरसात की !!

बिन बादल बरसात की !!

मेरी नजरो ने तुझ पर
कुछ शबनमो की बरसात की ,,,
तेरी तमनाओ ने मचल कर
बिन बादल बरसात की !!
मेरी शबनमी पलकों ने
धीरे से तेरी पलकों पर दस्तक दी ,,,
तेरी चाहतो ने मचल कर
बिन बादल बरसात की !!
रात्रि के तीसरे पहर
बंद होती पलकों पर ,,,
तेरी यादो ने मचल कर
बिन बादल बरसात की !!

मंजु चौधरी

Sunday, March 21, 2010

ऐ हमनाम .........a nameshake

ऐ हमनाम.......
मैने अपने आप से खेला है ,
जिन्दगी की आंधियो में धकेला है !
ऐ दोस्त ......
तू एतबार कर या न कर ,
मैने तुझ पर खुद को बिखेरा है !
हमदम.........
मुझ पर
तू करम कर या न कर ,
मैने तुझ पर खुद को वारा है !
जीवन के इस रणछेत्र में
तू मेरा साथ दे या न दे ,
मैने धर्मछेत्र को अपनाया है !
ऐ हमनाम .........
जीवन के इस हवनकुंड में ,
मैने खुद की आहुति डाली है !
तू एतबार कर या न कर ,
मैने अपने आप से खेला है ,
जिन्दगी की आंधियो में धकेला है !

मंजु चौधरी

पहल उनकी.........After you.................

दुनिया में कब, कहा किस मोड़ पर
हो उनसे मुलाकात ,
न वो जानते है न हम !
मगर .......
इंतजार उनको भी है ,
ऐसे ही किसी मोड़ का ,
इंतजार हम को भी है ,
ऐसे ही किसी मोड़ का !
सोचते है वो भी अक्सर ,
बारे में हमारे कुछ ऐसा ही !
मगर .............
जानते वो भी कुछ नहीं ,
जानते हम भी कुछ नहीं ,
मगर ..................
पहल उनकी , पहल उनकी
करते -करते ,
रफ्ता - रफ्ता ,
स्टेशन से गाड़ी कब
की छुट गई !
किसी सुहाने मोड़ का इंतजार
करते - करते ,
जाने वो हसीं ख़वाब
कितने मोड़ पीछे हम से ,
छुट गया !
और ...............
हम सोचते ही रहा गए ,
उस हसीं मोड़ के इंतजार में ,
तनहा - तनहा !


मंजु चौधरी

तुम (अजनबी) only you a ajnabi

तुम (अजनबी)

न इस जहान में हो तुम
न उस जहान में हो तुम
मेरी निगाहों में हो तुम
मेरे इंतजार में हो तुम
मेरे अहसासों में हो तुम
मेरी सुबह - शाम में हो तुम
जहाँ भी हो तुम
मेरे करीब हो तुम

दिल में बसे हो तुम
धड़कन में धड़कते हो तुम
अश्को में बहते हो तुम
पलकों पर ठहरे हो तुम
बाहों में समाये हो तुम
जहाँ भी हो तुम
मेरे करीब हो तुम

खयालो में शामिल हो तुम
सपनो में बसे हो तुम
चाहत बने हो तुम
इबादत बने हो तुम
जहाँ भी हो तुम
मेरे करीब हो तुम

अनजाने रहे हो तुम
पहचाने बने हो तुम
दूर होकर भी
पास दिखे हो तुम
जहाँ भी हो
मेरे करीब हो तुम

जिन्दगी बने हो तुम
अक्स में ढले हो तुम
पूजा की थाली में
ज्योति बने हो तुम
दिया में बाती की तरह
मुझमे मिले हो तुम
जहाँ भी हो
मेरे करीब हो तुम

तलाश तुम्हारी दूर डगर तक
हाथो की रेखा से
जीवन की राहों तक
जहाँ भी हो
मेरे करीब हो तुम

फूलो की सुगंद हो तुम
खुशियों की मिठास हो तुम
मेरे अरमानो का
साकार रूप हो तुम
जहाँ भी हो
मेरे करीब हो तुम


मंजु चौधरी

लफ्जों की बंदिशे ...................words limitations ..............

लफ्जों की बंदिशे ...................

हुकूमत के लफ़्ज मुझे आते नहीं ,
जम्हूरियत के लफ़्ज सरकार जानती नहीं !
तब ऐ हुक्मरानों ,
ऐ हिंदुस्तान वालो ,
तुम ही बताओ .............
मेरे अल्फ़ाज घुट कर
कही मर गए तो क्या !
तुम्हारी सरकारों का ताज
तो सलामत रहेगा !
हुक्मरानों के महल तो यूही सजते रहेगे !
किसी गरीब का घर उजाड़ गया तो क्या !
कोई देवी बेवा हो गई तो क्या !
तुम्हारे घरो के चिराग तो सलामत रहेगे !
हुकूमत के लफ़्ज मुझे आते नहीं ,
जम्हूरियत के लफ़्ज सरकार जानती नहीं!


{ जम्हूरियत --- जनतंत्र }


मंजु चौधरी