Monday, April 13, 2009

Samarpan

मै ख्याल हु तुम्हारा ,

मै हकीक़त हु तुम्हारी ,

देख लो छवि तुम अपनी ,

आईना मुझे अपना समझकर !

मै साया हु तुम्हारी ,

मै खवाब हु तुम्हारा ,

देख लो सच्चाई तुम अपनी ,

आईना मुझे अपना समझकर !

मै आरजू हु तुम्हारी ,

मै जिन्दगी हु तुम्हारी ,

देख लो सच्चाई तुम अपनी ,

आईना मुझे अपना समझकर !

मै खुशबू हु तुम्हारी ,

मै सादगी हु तुम्हारी ,

देख लो व्यक्तितव तुम अपना ,

आईना मुझे अपना समझकर !

मै बीता कल हु तुम्हारा ,

मै वर्तमान हु तुम्हारा ,

देख लो भविष तुम अपना ,

आईना मुझे अपना समझकर !

Tuesday, April 7, 2009

शहीदे - ऐ - आजम

शहीदे - ऐ - आजम

जरा सोचिये ???
क्या इसी दिन के लिए भगत सिंह ने भूख हड़ताल की थी .
ताकि लाखो लोग भूखे मरे .
जरा सोचिये ???
क्या यही सब दिन देखने के लिए उस युवक ने
अपनी जवानी देश पर कुर्बान की .
जरा सोचिये ???
झाक कर देखिये अपने मन में
और खोजिये जवाब
जो उन्होंने किया वो सही था
या
जो आप कर रहे है वो सही है .
जरा सोचिये ???

जय हिंद



मंजु चौधरी

खामोश पदचाप

मै जब भी सोचती हु तुम्हारे बारे में
याद आती है मुझको
वो सभी बाते ,जो तुमको
कभी नहीं कही मुझको
लेकिन
बिना शब्दों के तुमने , मुझको
वो सब कुछ कहा
जो सुनना चाहती थी
मै
सिर्फ तुमसे !
साथ - साथ चल कर
हमने कोई पल नहीं बिताया
लेकिन
अपने हर कदम के साथ मैंने
महसूस किया है तुम्हारी
खामोश पदचाप को !
संग अपने दोस्तों के बैठ कर
जब भी हँसती हु मै
खनक तुम्हारी हँसी की साथ मेरे
हँसती है देर तक
दूर सेहरा में जाकर जब टूटती
है तंद्रा मेरे विचारो की
तो अपने दो कदमों के साथ
दो कदमों के साये और भी
साथ चलते दीखते है मुझको !
मेरी जिंदगी के बीते हुए
हर सफे पर अब तो
मुझको साफ़ दिखाई दे जाती है
झलक तुम्हारी !
हर पल , हर लम्हा साथ मेरे
यू ही रहना हमसाया मेरा !


मंजु चौधरी

Saturday, April 4, 2009

हमराही बन कर मेरे साथ चलो तो सही.


जिन्दगी के साथ वक्त की तरह ,
हमसाया बन कर चलो तो सही !
नजर - नजर में मुलाकात है ,
उसे हकीकत में बदलो तो सही !
नहीं जुस्तजू तुम्हारी मै ,
पर एक बार चाहत बन कर देखो तो सही !
नहीं आरजू फलक के चाँद - तारो की ,
पर मुझ पर प्यार भरी निगहा डालो तो सही !
ये मन छोटा है सफ़र जिन्दगी का ,
दो कदम साथ चलो तो सही !
जानती हु मै रंगीनियों से दूर हो तुम ,
पर एक बार मुहबत करके देखो तो सही !
कसमे - वादे झूठे है सब तुम्हारे लिए ,
बस एक बार मेरा साथ निभाने का वायद करो
तो सही !
बस पहली और आखरी बार ,
यही इल्तजा है मेरी तुमसे ,
हमराही बन कर मेरे साथ चलो तो सही !

मंजु चौधरी

अनारकली..तुम ही हो जन्नत का द्वार..



कुछ दिनों पहले एक न्यूज़ चैनल पर अनारकली की दुःख भरी दास्ताँ बयां की गई ! उसको देख कर दुःख भी हुआ और एक नई सोच भी मिली ! कहा नहीं है अनारकली !!!!!!! सिर्फ महलों की दीवारों से ही सर टक्करा कर एक वही अनारकली नहीं मरी बल्कि आज अगर आप नजर उठा कर देखे तो हर गली- कुचे में किसी और अनारकली की सिसकिया सुनाई देने लगेगी !अनारकली महलों की चारदीवारी से निकल कर खासों - आम घरो के रस्ते से होते हुए झुगी - झोपडियों तक मिल जायेगी ! शहरों में ही नहीं गाव - गाव भी इन को देखा जा सकता है ! क्या हुआ अगर एक बादशहा अकबर ने अनारकली को इश्क करने की सजा दी तो आज हर पिता पर अकबर बनने का जूनून सवार है ! अनारकली का दर्द तब भी नहीं दिखाई दिया था किसी को और आज भी इसके दर्द का अंदाजा किसी को नहीं है ! उसके दर्द भरे दिल की आहट शायद कभी कोई नहीं सुन पायेगा ! लेकिन अगर मैंने महसूस किया है तो आप सभी में से भी कोई न कोई जरुर महसूस करेगा उस तकलीफ को , दर्द को ! इसी उम्मीद के साथ अपने शब्द आपके सामने रखने की हिमाकत कर रही हूँ कि शायद मेरे इन शब्दों से कोई और अनारकली जिंदा दीवार में न चुनवाई जाय ।
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अनारकली
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मोहव्वत का दर्द जो था उसके सीने में साथ ही लेकर ,
गुमनाम हो गयी वो कहा गयी ,
कोई नहीं जानता ,
आज भी ऐसी ही न जाने कितनी ही ,
अनारकली हमारे समाज में है !
क्या करते है हम उनके लिए !
सिर्फ , सुनते है उनका दर्द हँसते है और चले जाते है अपने आशियाने की ओर ,
और एक बार फिर रह जाती है वो तन्हा !
अपने ही इश्क के फ़साने में अंधेरो में जद्दोजहद करते हुए
कि किस तरह पहुचाऊ इसे परवान कैसे बचाऊ दुनिया की नजरो से
लेकिन हाय री किस्मत हाय रे बेमुरब्बत समाज
गुमनामी और इश्क एक ही सिक्के के तो दो पहलू है !
जरा सोचिये कहा नहीं है अनारकली ,
जरा नजरे उठा कर तो देखो हर तरफ है एक अनारकली रोती ,
घुटती , सिसकती हुई अपनी व्वथा अपने दिल में ही छिपाए !
कितनी ही हो जाती है विदा इस खुबसूरत दुनिया से !
कभी भ्रूण हत्या के रूप में तो कभी दहेज़ की बलि बन कर
और कभी माँ , बेटी बहन और पत्नी बन कर
परिवार की सारी बलाए अपने सर लेकर !
विदा कर दी जाती है इस जहाँ से उस जहाँ तक कह कर ये .........
तुम ही हो जन्नत का द्वार
और तुम ही हो नरक का द्वार भी

मंजु चौधरी

कल तन्हा सी रात मै मैंने देखा .............


कल तन्हा सी रात

मै मैंने देखा....

इक तन्हा से तारे को ,

खुले गगन मे था वो तन्हा ,

कल अंधियारी रात मे !

देखकर उसको ऐसा लगा ,

जैसे खड़ी हूँ मै अकेली ,

इस तन्हा से जहान मे ,

पाने को अस्तित्व अपना !

कल तन्हा सी रात मै मैंने देखा ..............

अपने मन को झाकते से अपने अंतर्मन की गहराई मे ,

कितना तन्हा है ,

वो इस बड़ी सी दुनिया में !

भागते उसको मैंने रोका ,

इस दुनिया की भीड़ मे !

कल तन्हा सी रात मै मैंने देखा ...............

मेरे अपनों को अपनों की ,

इस भीड़ मे ,

थे वो मुझ से दूर कभी ,

है वो सब से पास अभी !

कल तन्हा सी रात मै मैंने देखा .............

इक नन्ही सी ज्योत को ,

जो जलती है औरों की खातिर ,

अंधियारे को दूर करने ,

और खुद रहती है ,

इक किरण की आस मे !

कल तन्हा सी रात मै मैंने देखा ................

उसको तन्हा ,

जो करती है दूर सदा औरों की तन्हाई को ,

सगे - सम्बन्दी बन कर उनकी ,

जिन का कोई नहीं , इस बड़ी सी दुनिया मे ,

कल तन्हा सी रात मै मैंने देखा .............

उसको तन्हा ?????