कलम कभी की बिक चुकी है .......
स्याही उसकी सूख चुकी है !
सत्ता के गलियारों में
उसके कागज बिखर चुके है !
कलम कभी की ................!
शब्दों के जंजालो में
इंसानों के जज्बात्तो का
खून कभी का हो चुका है !
कलम कभी की ...............!
मदिरा के प्यालो में अब तो
कलम की स्याही धुल चुकी है
कलम कभी की .....................!
कुछ तोहफो के बदले में
तारीफों के लेख लिख कर
कलम की आजादी अब तो
जंजीरों में बंद चुकी है !
कलम कभी की ...............
सुनने में तो लगता बुरा है
लिखने में भी कष्ट है मुझको
सच्चाई पर यही है अब तो !
कलम कभी की ...................!
झुठला दे कोई जो इसको
उसके पास ही सही कलम है !
वरना इसके आगे अब तो
लिखने को कुछ रहा नहीं है !
कलम कभी की बिक चुकी है !
डॉ. मंजु चौधरी
Saturday, December 26, 2009
Saturday, December 19, 2009
नारी और भगवान...........
दुनिया भर का दर्द ,
क्या मेरे ही जीवन में !
दुनिया भर के काटे ,
क्या मेरी ही राहों में !
दुनिया भर की नफरत ,
क्या मेरी ही सूरत में !
जब शिकायत भी करू खुदा से ,
तो खुदा कहते है हमसे ,
न ही तुम इंसान हो ,
जिसे मैंने बनाया है मिटी से ,
न ही तुम फोलाद हो ,
जिसे मैने बनाया है इच्छाशक्ति से ,
तुम तो केवल रहस्य हो !
जिसे मैने बनाया है खुद अपने हाथो से !
जिसे मैने बनाया है खुद अपने सपनो से !
जिसे मैने बनाया है खुद बड़े प्यार से !
जिस दिन समझा जाओगी इस बात को ,
उस दिन समझ जाओगी अपने जीवन को !
क्यों दर्द है दुनिया भर का
तेरे जीवन में !
धरती पर जनम लेने वाला हर शख्स
मेरा ही इक अंश है !
इक दिन मुझ में ही आकर मिल जाता है !
अपनी बनाई हुई इन कठपुतलियों से ,
मिला दर्द , कांटे , नफरत
जब सब में सहता हु ,
तब तुम भी सह सकती हो वो सब ,
क्योकि ........
तुम उन सब से अलग जो हो !
मेरे सब से करीब जो हो !
मेरा ही दूसरा रूप हो तुम !
मै करता हु तुम्हारी इब्बादत !
तुम कर्ति हो मेरी बनाई हुई ,
इस सम्पूरण कायनात की इबादत !
मै रखता हु नारी हदय ,
और तुम ........
तुम तो सम्पूरण नारी हो !
ठहर जाओगी तुम जिस दिन
रुक जायेगी मेरी कायनात उस दिन !
क्या कहू मै इससे जायदा ,
तुम्हे तुम्हारी पहचान बताने को ,
क्यों दर्द है दुनिया भर का
तेरे ही जीवन में !
क्यों काटे है दुनिया भर के
तेरी ही राहों में !
क्यों नफरत है दुनिया भर की
तेरी ही सूरत में !
डॉ. मंजु चौधरी
manndagar@yahoo.com
क्या मेरे ही जीवन में !
दुनिया भर के काटे ,
क्या मेरी ही राहों में !
दुनिया भर की नफरत ,
क्या मेरी ही सूरत में !
जब शिकायत भी करू खुदा से ,
तो खुदा कहते है हमसे ,
न ही तुम इंसान हो ,
जिसे मैंने बनाया है मिटी से ,
न ही तुम फोलाद हो ,
जिसे मैने बनाया है इच्छाशक्ति से ,
तुम तो केवल रहस्य हो !
जिसे मैने बनाया है खुद अपने हाथो से !
जिसे मैने बनाया है खुद अपने सपनो से !
जिसे मैने बनाया है खुद बड़े प्यार से !
जिस दिन समझा जाओगी इस बात को ,
उस दिन समझ जाओगी अपने जीवन को !
क्यों दर्द है दुनिया भर का
तेरे जीवन में !
धरती पर जनम लेने वाला हर शख्स
मेरा ही इक अंश है !
इक दिन मुझ में ही आकर मिल जाता है !
अपनी बनाई हुई इन कठपुतलियों से ,
मिला दर्द , कांटे , नफरत
जब सब में सहता हु ,
तब तुम भी सह सकती हो वो सब ,
क्योकि ........
तुम उन सब से अलग जो हो !
मेरे सब से करीब जो हो !
मेरा ही दूसरा रूप हो तुम !
मै करता हु तुम्हारी इब्बादत !
तुम कर्ति हो मेरी बनाई हुई ,
इस सम्पूरण कायनात की इबादत !
मै रखता हु नारी हदय ,
और तुम ........
तुम तो सम्पूरण नारी हो !
ठहर जाओगी तुम जिस दिन
रुक जायेगी मेरी कायनात उस दिन !
क्या कहू मै इससे जायदा ,
तुम्हे तुम्हारी पहचान बताने को ,
क्यों दर्द है दुनिया भर का
तेरे ही जीवन में !
क्यों काटे है दुनिया भर के
तेरी ही राहों में !
क्यों नफरत है दुनिया भर की
तेरी ही सूरत में !
डॉ. मंजु चौधरी
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