Tuesday, March 3, 2009

भारतीय संस्कार

करके अनदेखा जीवन को
रहना चाहू मै मृत्यु संग
धर्मो का बटवारा करके
रहना चाहू मै स्वतंत्र
मेरी तहजीब को ये गवारा नहीं

बेच दू खुदाई सियासतदारो को
भूला दू इन्संनियत कुछ पत्थरो के वास्ते
देकर अपना हिमालय तुमको
पाना चाहू मै खुशहाली
मेरी तहजीब को ये गवारा नहीं

शहीदों के बहे रक्त को अनदेखा करके
पीछा करू सियासती सिपहसलारो का
आज़ादी को जकड कर बेडियों में
पेश करू तुम्हारे महलों में
मेरी तहजीब को ये गवारा नहीं

पश्चिम का अनुकरण करू इस कदर
कि उसे भी न अपना सकू
और अपनी भी भूल जाऊ
मेरी तहजीब को ये गवारा नहीं

आखो में सपने
चाँद तारो को छुने के
दिल में अरमान
सागर को नापने के
लेकिन इन सब के लिए
गिरने पड़ेगे मुझे शव अपनों के
मेरी तहजीब को ये गवारा नहीं
मेरी तहजीब को ये गवारा नहीं

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