Sunday, January 10, 2010

पर्यावरण में बदलाव ..................

पर्यावरण में बदलाव ..................

थिरकती धरती का सिहासन

जब - जब डोला
नयी सभ्यता ने तब - तब
नव जीवन पाया !
बलखाती हरियाली ने तब - तब
नव पोध उपजाई !
थिरकती धरती का सिहासन
जब - जब डोला ...........
नयी सभ्यता ने तब - तब
नव जीवन पाया !
लेकिन अब !!!!!!!!!!!
पर्यावरण में होते बदलाव से .....
जब थरथराती है धरती
नवजीवन के बदले में वो
विध्वंस मचा जाती है !
लहराती हरियाली अब पल में
नष्ट तभी हो जाती है !
ऊंची -ऊंची इमारतो से
गाँव कही खो जाते है !
छोटे होते आंगन से अब
खेत कही खो जाते है !
युवा होते जीवन से अब
बचपन कही खो जाता है !
जब भी थरथराती है धरती
उधल - पुथल हो जाती है
अब आओ साथियों ...........
वक्त की पुकार सुने
बदलाव की हवा चले
थरथर करती धरती अब
थिरकन को मजबूर करे !
यही प्रण ले कर अब हमसब
धरती का श्रृंगआर करे !
डॉ.मंजू चौधरी
manndagar@yahoo.com

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