Monday, March 29, 2010
जब तक लौट न आऊ मै..................
छोड़ आई मै ,रूह को अपनी , पास तेरे
छोड़ आई मै, निंदिया अपनी, दर पे तेरे
तू रखना, रूह को मेरी सलामत
जब तक वापिस न आऊ मै !!!!
तू रखना, निंदिया को मेरी सलामत
जब तक लौट न आऊ मै !!!!
छोड़ आई मै, मुस्कान को अपनी, पास तेरे
छोड़ आई मै, बेफिक्री अपनी, दर पे तेरे
तू रखना, मुस्कान को मेरी सलामत
जब तक लौट न आऊ मै !!!!
तू रखना, बेफिक्री को मेरी सलामत
जब तक लौट न आऊ मै !!!!
छोड़ आई मै, कदमो को अपने , दर पर तेरे
छोड़ आई मै, सपनो को अपने, नैनों में तेरे
तू रखना, पहचान मेरी सलामत
जब तक लौट न आऊ मै !!!!
तू रखना, सपनो को मेरे सलामत
जब तक लौट न आऊ मै !!!!
मंजु चौधरी
Wednesday, March 24, 2010
बिन बादल बरसात की !!
मेरी नजरो ने तुझ पर
कुछ शबनमो की बरसात की ,,,
तेरी तमनाओ ने मचल कर
बिन बादल बरसात की !!
मेरी शबनमी पलकों ने
धीरे से तेरी पलकों पर दस्तक दी ,,,
तेरी चाहतो ने मचल कर
बिन बादल बरसात की !!
रात्रि के तीसरे पहर
बंद होती पलकों पर ,,,
तेरी यादो ने मचल कर
बिन बादल बरसात की !!
मंजु चौधरी
Sunday, March 21, 2010
ऐ हमनाम .........a nameshake
जिन्दगी की आंधियो में धकेला है !
ऐ दोस्त ......
तू एतबार कर या न कर ,
मैने तुझ पर खुद को बिखेरा है !
ऐ हमदम.........
मुझ पर तू करम कर या न कर ,
मैने तुझ पर खुद को वारा है !
जीवन के इस रणछेत्र में
तू मेरा साथ दे या न दे ,
मैने धर्मछेत्र को अपनाया है !
ऐ हमनाम .........
जीवन के इस हवनकुंड में ,
मैने खुद की आहुति डाली है !
तू एतबार कर या न कर ,
मैने अपने आप से खेला है ,
जिन्दगी की आंधियो में धकेला है !
पहल उनकी.........After you.................
हो उनसे मुलाकात ,
न वो जानते है न हम !
मगर .......
इंतजार उनको भी है ,
ऐसे ही किसी मोड़ का ,
इंतजार हम को भी है ,
ऐसे ही किसी मोड़ का !
सोचते है वो भी अक्सर ,
बारे में हमारे कुछ ऐसा ही !
मगर .............
जानते वो भी कुछ नहीं ,
जानते हम भी कुछ नहीं ,
मगर ..................
पहल उनकी , पहल उनकी
करते -करते ,
रफ्ता - रफ्ता ,
स्टेशन से गाड़ी कब
की छुट गई !
किसी सुहाने मोड़ का इंतजार
करते - करते ,
जाने वो हसीं ख़वाब
कितने मोड़ पीछे हम से ,
छुट गया !
और ...............
हम सोचते ही रहा गए ,
उस हसीं मोड़ के इंतजार में ,
तनहा - तनहा !
मंजु चौधरी
तुम (अजनबी) only you a ajnabi
न इस जहान में हो तुम
न उस जहान में हो तुम
मेरी निगाहों में हो तुम
मेरे इंतजार में हो तुम
मेरे अहसासों में हो तुम
मेरी सुबह - शाम में हो तुम
जहाँ भी हो तुम
मेरे करीब हो तुम
दिल में बसे हो तुम
धड़कन में धड़कते हो तुम
अश्को में बहते हो तुम
पलकों पर ठहरे हो तुम
बाहों में समाये हो तुम
जहाँ भी हो तुम
मेरे करीब हो तुम
खयालो में शामिल हो तुम
सपनो में बसे हो तुम
चाहत बने हो तुम
इबादत बने हो तुम
जहाँ भी हो तुम
मेरे करीब हो तुम
अनजाने रहे हो तुम
पहचाने बने हो तुम
दूर होकर भी
पास दिखे हो तुम
जहाँ भी हो
मेरे करीब हो तुम
जिन्दगी बने हो तुम
अक्स में ढले हो तुम
पूजा की थाली में
ज्योति बने हो तुम
दिया में बाती की तरह
मुझमे मिले हो तुम
जहाँ भी हो
मेरे करीब हो तुम
तलाश तुम्हारी दूर डगर तक
हाथो की रेखा से
जीवन की राहों तक
जहाँ भी हो
मेरे करीब हो तुम
फूलो की सुगंद हो तुम
खुशियों की मिठास हो तुम
मेरे अरमानो का
साकार रूप हो तुम
जहाँ भी हो
मेरे करीब हो तुम
मंजु चौधरी
लफ्जों की बंदिशे ...................words limitations ..............
हुकूमत के लफ़्ज मुझे आते नहीं ,
जम्हूरियत के लफ़्ज सरकार जानती नहीं !
तब ऐ हुक्मरानों ,
ऐ हिंदुस्तान वालो ,
तुम ही बताओ .............
मेरे अल्फ़ाज घुट कर
कही मर गए तो क्या !
तुम्हारी सरकारों का ताज
तो सलामत रहेगा !
हुक्मरानों के महल तो यूही सजते रहेगे !
किसी गरीब का घर उजाड़ गया तो क्या !
कोई देवी बेवा हो गई तो क्या !
तुम्हारे घरो के चिराग तो सलामत रहेगे !
हुकूमत के लफ़्ज मुझे आते नहीं ,
जम्हूरियत के लफ़्ज सरकार जानती नहीं!
{ जम्हूरियत --- जनतंत्र }
मंजु चौधरी
इस दौर में इन्सान होना गुनाह लगता है !!!!!!!! Life is crime
इस दौर में इन्सान होना गुनाह लगता है !
इस दौर में हौवानो की इक बस्ती है ,
बस्ती का चारो तरफ शोर बहुत है ,
इस दौर में इन्सान होना गुनाह लगता है !
इस दौर में धर्मो की इक बस्ती है ,
बस्ती का चारो तरफ खौफ बहुत है ,
इस दौर में इन्सान होना गुनाह लगता है !
कोई जाट , कोई सिख , कोई मराठा
कोई हिन्दू , मुस्लिम , सिख , ईसाई
सभी है भाई - भाई !
इबादतों का ये दौर खत्म समझो यारो ,
इस दौर में इन्सान होना गुनाह लगता है !
मंजु चौधरी
प्रिये , तुम........love only you..........
प्रिये , तुम ! love only you......
प्रिये , तुम मुझको भरमाते हो ,
जीवन की अठखेलियों
करते पलो में आकर
मुझको तुम गुदगुदाते हो !
प्रिये , तुम ..................
निश्चल जीवन में
हिलोरे लेती उमगों की
पतवार हिला जाते हो
प्रिये , तुम ............
गुनगुनाते जीवन के
सपनो के आंचल को
लहरा कर चले जाते हो !
प्रिये , तुम मुझको भरमाते हो !
एक ऐसे दीये की लौ बन .....A beautiful light
अगर बनना है तुम्हे कुछ तो
एक ऐसे दीये की लौ बन ,
जो जलती है पल - पल
अँधियारा मिटने को
दूसरों के जीवन का !
अगर बनना है तुम्हे कुछ तो
एक ऐसे दीये की लौ बन ,
जो धधकती है पल - पल
लोगो के दिलों में
चिंगारी बन जाने को ,
जो कर दे सीना चलनी
दुश्मन के इरादों का !
अगर बनना है तुम्हे कुछ तो
एक ऐसे दीये की लौ बन
मंजु चौधरी
मुझको मेरे बाद जमाना खोजेगा !!!!!!!!! World will be search my footprints !!!!!!
मुझको मेरे बाद जमाना खोजेगा !!!!!!
मेरे कदमो की आहट ,
मेरे सपनो की पहचान खोजेगा !
मुझको मेरे बाद जमाना खोजेगा !
अम्बर को छुने की ख्वाहिस ,
सितारों संग जीने की चाहत ,
मुझको मेरे ............!
खनकती हँसी ,
आखों की हया ,
फुलों सी महक ,
पलकों की नमी ,
मुझको मेरे बाद जमाना खोजेगा !!!!!!!!!
इक आवारा बादल........ A flirting cloud
इक आवारा बादल........ A flirting cloud
जिन्दगी के हर मोड़ पर तुम्हारा साथ ,
पाने की चाहत की थी कभी !
जिन्दगी के हर दोराहे पर तुम्हारे साथ ,
चलने की चाहत की थी कभी !
जिन्दगी की हर उस जदोजहद पर जहा ,
डगमगाए थे कदम तुम्हारे !
तुम्हे सँभालने की चाहत की थी कभी !
लेकिन ,,,,,,,,,,
तुम तो तुम ही थे !
न कभी किसी का साथ चाहा ,
न कभी अपना साथ दिया ,
अपनी मंजिल खुद खोजी !
चल कर पथरीली राहों पर !
नहीं डरे तुम काटों से ,
नहीं डरे तुम पथरो से ,
सपना जो देखा था तुमने ,
कुछ कर दिखने का ,
दुनिया से अलग !
इसलिए ,,,,,,,,,
अकेला चलने का व्रत जो लिया था तुम ने ,
आखरी दम तक निभाया भी उसको तुमने ,
तभी तो पसंद रहें तुम मेरी ,
हमेशा ही सब से अलग ,
इक आवारा बादल की तरह !
मेरे मन की आवारगी .............My Flirting mann ....... by manju dagar, News Anchor/TV Presenter, Time Today मेरे मन की आवारगी .............My Flir
कभी भटकती है शहरों की
अँधेरी रातो में !
तो कभी भटकती है गाँव की
अल्हड़ पगडंडियो में !
मेरे मन की आवारगी .............
कभी भटकती है खुसरो की
रूबाइयो में !
तो कभी भटकती है आजमी की
गज़लों में !
मेरे मन की आवारगी ..............
कभी भटकती है कवि प्रदीप के
गीतों में !
तो कभी भटकती है ख़य्याम की
गज़लों में !
मेरे मन की आवारगी ..............
कभी भटकती है नील गगन के
विस्तृत पटल पर !
तो कभी भटकती है सागर की
तलहटी में !
मेरे मन की आवारगी ...............!
मंजु चौधरी
जय हिंद !!!!!!!!!!!!! Jai Hind......................
तलवार कभी रूकती नहीं
कलम कभी थकती नहीं
राज कभी झुकता नहीं
और
हम कभी रुकते नहीं
क्योकि हम है
भारत की आन, बान, शान
और
भारत की आवाज
नव भारत
जय हिंद
मंजु चौधरी