तुम (अजनबी)
न इस जहान में हो तुम
न उस जहान में हो तुम
मेरी निगाहों में हो तुम
मेरे इंतजार में हो तुम
मेरे अहसासों में हो तुम
मेरी सुबह - शाम में हो तुम
जहाँ भी हो तुम
मेरे करीब हो तुम
दिल में बसे हो तुम
धड़कन में धड़कते हो तुम
अश्को में बहते हो तुम
पलकों पर ठहरे हो तुम
बाहों में समाये हो तुम
जहाँ भी हो तुम
मेरे करीब हो तुम
खयालो में शामिल हो तुम
सपनो में बसे हो तुम
चाहत बने हो तुम
इबादत बने हो तुम
जहाँ भी हो तुम
मेरे करीब हो तुम
अनजाने रहे हो तुम
पहचाने बने हो तुम
दूर होकर भी
पास दिखे हो तुम
जहाँ भी हो
मेरे करीब हो तुम
जिन्दगी बने हो तुम
अक्स में ढले हो तुम
पूजा की थाली में
ज्योति बने हो तुम
दिया में बाती की तरह
मुझमे मिले हो तुम
जहाँ भी हो
मेरे करीब हो तुम
तलाश तुम्हारी दूर डगर तक
हाथो की रेखा से
जीवन की राहों तक
जहाँ भी हो
मेरे करीब हो तुम
फूलो की सुगंद हो तुम
खुशियों की मिठास हो तुम
मेरे अरमानो का
साकार रूप हो तुम
जहाँ भी हो
मेरे करीब हो तुम
मंजु चौधरी
4 comments:
सुगंध कर लें। समस्त कविताएं अच्छी है। बधाई।
Beautiful words.
Keep it up.
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tum hi tum ho to kya tum ho..hum hi hum hain to kya hum hain............
will love to love read more please write something about the true love.........
very nice
bahut accha likha hai
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