कल तन्हा सी रात
मै मैंने देखा....
इक तन्हा से तारे को ,
खुले गगन मे था वो तन्हा ,
कल अंधियारी रात मे !
देखकर उसको ऐसा लगा ,
जैसे खड़ी हूँ मै अकेली ,
इस तन्हा से जहान मे ,
पाने को अस्तित्व अपना !
कल तन्हा सी रात मै मैंने देखा ..............
अपने मन को झाकते से अपने अंतर्मन की गहराई मे ,
कितना तन्हा है ,
वो इस बड़ी सी दुनिया में !
भागते उसको मैंने रोका ,
इस दुनिया की भीड़ मे !
कल तन्हा सी रात मै मैंने देखा ...............
मेरे अपनों को अपनों की ,
इस भीड़ मे ,
थे वो मुझ से दूर कभी ,
है वो सब से पास अभी !
कल तन्हा सी रात मै मैंने देखा .............
इक नन्ही सी ज्योत को ,
जो जलती है औरों की खातिर ,
अंधियारे को दूर करने ,
और खुद रहती है ,
इक किरण की आस मे !
कल तन्हा सी रात मै मैंने देखा ................
उसको तन्हा ,
जो करती है दूर सदा औरों की तन्हाई को ,
सगे - सम्बन्दी बन कर उनकी ,
जिन का कोई नहीं , इस बड़ी सी दुनिया मे ,
कल तन्हा सी रात मै मैंने देखा .............
उसको तन्हा ?????
1 comment:
hi manju...very good profile ..nice to see u.
here iam pradeep k k ..working for delhi internationl airport as a executive engineer in Terminal 3...
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