Saturday, December 26, 2009
कलम कभी की बिक चुकी है ........!!!!!!!!!!
स्याही उसकी सूख चुकी है !
सत्ता के गलियारों में
उसके कागज बिखर चुके है !
कलम कभी की ................!
शब्दों के जंजालो में
इंसानों के जज्बात्तो का
खून कभी का हो चुका है !
कलम कभी की ...............!
मदिरा के प्यालो में अब तो
कलम की स्याही धुल चुकी है
कलम कभी की .....................!
कुछ तोहफो के बदले में
तारीफों के लेख लिख कर
कलम की आजादी अब तो
जंजीरों में बंद चुकी है !
कलम कभी की ...............
सुनने में तो लगता बुरा है
लिखने में भी कष्ट है मुझको
सच्चाई पर यही है अब तो !
कलम कभी की ...................!
झुठला दे कोई जो इसको
उसके पास ही सही कलम है !
वरना इसके आगे अब तो
लिखने को कुछ रहा नहीं है !
कलम कभी की बिक चुकी है !
डॉ. मंजु चौधरी
Saturday, December 19, 2009
नारी और भगवान...........
क्या मेरे ही जीवन में !
दुनिया भर के काटे ,
क्या मेरी ही राहों में !
दुनिया भर की नफरत ,
क्या मेरी ही सूरत में !
जब शिकायत भी करू खुदा से ,
तो खुदा कहते है हमसे ,
न ही तुम इंसान हो ,
जिसे मैंने बनाया है मिटी से ,
न ही तुम फोलाद हो ,
जिसे मैने बनाया है इच्छाशक्ति से ,
तुम तो केवल रहस्य हो !
जिसे मैने बनाया है खुद अपने हाथो से !
जिसे मैने बनाया है खुद अपने सपनो से !
जिसे मैने बनाया है खुद बड़े प्यार से !
जिस दिन समझा जाओगी इस बात को ,
उस दिन समझ जाओगी अपने जीवन को !
क्यों दर्द है दुनिया भर का
तेरे जीवन में !
धरती पर जनम लेने वाला हर शख्स
मेरा ही इक अंश है !
इक दिन मुझ में ही आकर मिल जाता है !
अपनी बनाई हुई इन कठपुतलियों से ,
मिला दर्द , कांटे , नफरत
जब सब में सहता हु ,
तब तुम भी सह सकती हो वो सब ,
क्योकि ........
तुम उन सब से अलग जो हो !
मेरे सब से करीब जो हो !
मेरा ही दूसरा रूप हो तुम !
मै करता हु तुम्हारी इब्बादत !
तुम कर्ति हो मेरी बनाई हुई ,
इस सम्पूरण कायनात की इबादत !
मै रखता हु नारी हदय ,
और तुम ........
तुम तो सम्पूरण नारी हो !
ठहर जाओगी तुम जिस दिन
रुक जायेगी मेरी कायनात उस दिन !
क्या कहू मै इससे जायदा ,
तुम्हे तुम्हारी पहचान बताने को ,
क्यों दर्द है दुनिया भर का
तेरे ही जीवन में !
क्यों काटे है दुनिया भर के
तेरी ही राहों में !
क्यों नफरत है दुनिया भर की
तेरी ही सूरत में !
डॉ. मंजु चौधरी
manndagar@yahoo.com
Friday, July 10, 2009
नयनों की परिभाषा
शर्माती इन नजरों में चेहरा तुम्हारा छुपाया है !
झुकती इन आखो में हमने प्यार तुम्हारा छुपाया है !
बंद होती इन नजरों में हमने ख्वाब तुम्हारे सजाये है !
नयनों की इसी परिभाषा को मैंने जग से सारे छुपाया है !
मुस्कुराती इन आखो में मैंने शरारत तुम्हारी बसाई है !
नम हुई इन पलकों पर सपने तुम्हारे सजाये है !
मंजु चौधरी
Monday, April 13, 2009
Samarpan
मै हकीक़त हु तुम्हारी ,
देख लो छवि तुम अपनी ,
आईना मुझे अपना समझकर !
मै साया हु तुम्हारी ,
मै खवाब हु तुम्हारा ,
देख लो सच्चाई तुम अपनी ,
आईना मुझे अपना समझकर !
मै आरजू हु तुम्हारी ,
मै जिन्दगी हु तुम्हारी ,
देख लो सच्चाई तुम अपनी ,
आईना मुझे अपना समझकर !
मै खुशबू हु तुम्हारी ,
मै सादगी हु तुम्हारी ,
देख लो व्यक्तितव तुम अपना ,
आईना मुझे अपना समझकर !
मै बीता कल हु तुम्हारा ,
मै वर्तमान हु तुम्हारा ,
देख लो भविष तुम अपना ,
आईना मुझे अपना समझकर !
Tuesday, April 7, 2009
शहीदे - ऐ - आजम
जरा सोचिये ???
क्या इसी दिन के लिए भगत सिंह ने भूख हड़ताल की थी .
ताकि लाखो लोग भूखे मरे .
जरा सोचिये ???
क्या यही सब दिन देखने के लिए उस युवक ने
अपनी जवानी देश पर कुर्बान की .
जरा सोचिये ???
झाक कर देखिये अपने मन में
और खोजिये जवाब
जो उन्होंने किया वो सही था
या
जो आप कर रहे है वो सही है .
जरा सोचिये ???
जय हिंद
मंजु चौधरी
खामोश पदचाप
याद आती है मुझको
वो सभी बाते ,जो तुमको
कभी नहीं कही मुझको
लेकिन
बिना शब्दों के तुमने , मुझको
वो सब कुछ कहा
जो सुनना चाहती थी
मै
सिर्फ तुमसे !
साथ - साथ चल कर
हमने कोई पल नहीं बिताया
लेकिन
अपने हर कदम के साथ मैंने
महसूस किया है तुम्हारी
खामोश पदचाप को !
संग अपने दोस्तों के बैठ कर
जब भी हँसती हु मै
खनक तुम्हारी हँसी की साथ मेरे
हँसती है देर तक
दूर सेहरा में जाकर जब टूटती
है तंद्रा मेरे विचारो की
तो अपने दो कदमों के साथ
दो कदमों के साये और भी
साथ चलते दीखते है मुझको !
मेरी जिंदगी के बीते हुए
हर सफे पर अब तो
मुझको साफ़ दिखाई दे जाती है
झलक तुम्हारी !
हर पल , हर लम्हा साथ मेरे
यू ही रहना हमसाया मेरा !
मंजु चौधरी
Saturday, April 4, 2009
हमराही बन कर मेरे साथ चलो तो सही.
हमसाया बन कर चलो तो सही !
नजर - नजर में मुलाकात है ,
उसे हकीकत में बदलो तो सही !
नहीं जुस्तजू तुम्हारी मै ,
पर एक बार चाहत बन कर देखो तो सही !
नहीं आरजू फलक के चाँद - तारो की ,
पर मुझ पर प्यार भरी निगहा डालो तो सही !
ये मन छोटा है सफ़र जिन्दगी का ,
दो कदम साथ चलो तो सही !
जानती हु मै रंगीनियों से दूर हो तुम ,
पर एक बार मुहबत करके देखो तो सही !
कसमे - वादे झूठे है सब तुम्हारे लिए ,
बस एक बार मेरा साथ निभाने का वायद करो
तो सही !
बस पहली और आखरी बार ,
यही इल्तजा है मेरी तुमसे ,
हमराही बन कर मेरे साथ चलो तो सही !
मंजु चौधरी
अनारकली..तुम ही हो जन्नत का द्वार..
कुछ दिनों पहले एक न्यूज़ चैनल पर अनारकली की दुःख भरी दास्ताँ बयां की गई ! उसको देख कर दुःख भी हुआ और एक नई सोच भी मिली ! कहा नहीं है अनारकली !!!!!!! सिर्फ महलों की दीवारों से ही सर टक्करा कर एक वही अनारकली नहीं मरी बल्कि आज अगर आप नजर उठा कर देखे तो हर गली- कुचे में किसी और अनारकली की सिसकिया सुनाई देने लगेगी !अनारकली महलों की चारदीवारी से निकल कर खासों - आम घरो के रस्ते से होते हुए झुगी - झोपडियों तक मिल जायेगी ! शहरों में ही नहीं गाव - गाव भी इन को देखा जा सकता है ! क्या हुआ अगर एक बादशहा अकबर ने अनारकली को इश्क करने की सजा दी तो आज हर पिता पर अकबर बनने का जूनून सवार है ! अनारकली का दर्द तब भी नहीं दिखाई दिया था किसी को और आज भी इसके दर्द का अंदाजा किसी को नहीं है ! उसके दर्द भरे दिल की आहट शायद कभी कोई नहीं सुन पायेगा ! लेकिन अगर मैंने महसूस किया है तो आप सभी में से भी कोई न कोई जरुर महसूस करेगा उस तकलीफ को , दर्द को ! इसी उम्मीद के साथ अपने शब्द आपके सामने रखने की हिमाकत कर रही हूँ कि शायद मेरे इन शब्दों से कोई और अनारकली जिंदा दीवार में न चुनवाई जाय ।
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अनारकली
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मोहव्वत का दर्द जो था उसके सीने में साथ ही लेकर ,
गुमनाम हो गयी वो कहा गयी ,
कोई नहीं जानता ,
आज भी ऐसी ही न जाने कितनी ही ,
अनारकली हमारे समाज में है !
क्या करते है हम उनके लिए !
सिर्फ , सुनते है उनका दर्द हँसते है और चले जाते है अपने आशियाने की ओर ,
और एक बार फिर रह जाती है वो तन्हा !
अपने ही इश्क के फ़साने में अंधेरो में जद्दोजहद करते हुए
कि किस तरह पहुचाऊ इसे परवान कैसे बचाऊ दुनिया की नजरो से
लेकिन हाय री किस्मत हाय रे बेमुरब्बत समाज
गुमनामी और इश्क एक ही सिक्के के तो दो पहलू है !
जरा सोचिये कहा नहीं है अनारकली ,
जरा नजरे उठा कर तो देखो हर तरफ है एक अनारकली रोती ,
घुटती , सिसकती हुई अपनी व्वथा अपने दिल में ही छिपाए !
कितनी ही हो जाती है विदा इस खुबसूरत दुनिया से !
कभी भ्रूण हत्या के रूप में तो कभी दहेज़ की बलि बन कर
और कभी माँ , बेटी बहन और पत्नी बन कर
परिवार की सारी बलाए अपने सर लेकर !
विदा कर दी जाती है इस जहाँ से उस जहाँ तक कह कर ये .........
तुम ही हो जन्नत का द्वार
और तुम ही हो नरक का द्वार भी
मंजु चौधरी
कल तन्हा सी रात मै मैंने देखा .............
कल तन्हा सी रात
मै मैंने देखा....
इक तन्हा से तारे को ,
खुले गगन मे था वो तन्हा ,
कल अंधियारी रात मे !
देखकर उसको ऐसा लगा ,
जैसे खड़ी हूँ मै अकेली ,
इस तन्हा से जहान मे ,
पाने को अस्तित्व अपना !
कल तन्हा सी रात मै मैंने देखा ..............
अपने मन को झाकते से अपने अंतर्मन की गहराई मे ,
कितना तन्हा है ,
वो इस बड़ी सी दुनिया में !
भागते उसको मैंने रोका ,
इस दुनिया की भीड़ मे !
कल तन्हा सी रात मै मैंने देखा ...............
मेरे अपनों को अपनों की ,
इस भीड़ मे ,
थे वो मुझ से दूर कभी ,
है वो सब से पास अभी !
कल तन्हा सी रात मै मैंने देखा .............
इक नन्ही सी ज्योत को ,
जो जलती है औरों की खातिर ,
अंधियारे को दूर करने ,
और खुद रहती है ,
इक किरण की आस मे !
कल तन्हा सी रात मै मैंने देखा ................
उसको तन्हा ,
जो करती है दूर सदा औरों की तन्हाई को ,
सगे - सम्बन्दी बन कर उनकी ,
जिन का कोई नहीं , इस बड़ी सी दुनिया मे ,
कल तन्हा सी रात मै मैंने देखा .............
उसको तन्हा ?????
Tuesday, March 3, 2009
मै भारत हूँ ...
मेरा दर्द किसने देखा आज तक .
सभी कहते है मै हु इसका रहबर ,
अरे ,
कोई मुझसे भी तो पूछे ,
कोन है मेरा रहबर !
मेरे दर्द का अहसास है सिर्फ़ मुझे
रहबर तो सेकते है मुझ पर
अपने स्वार्थ की रोटिया सिर्फ़
उन्हें इससे कोई फर्क नही पड़ता
जख्म तो मै झेलता हु !
हर रोज छलनी होता है सीना मेरा
आतंकवादियों की दनादन बरसती गोलियों से !
हर रोज हर तरफ़ होते कत्लेआम से !
ये जख्म तो मैंने आप को वो दिखाए है
जो दिखाई देते है सब को
उन जख्मो का तो कोई हिसाब ही नही है
जिन्हें दिखाया नही जा सकता ,
सिर्फ़
महसूस किया जा सकता है .
दर्द ?
फिर भी जीता हु मै
हर रोज
करोडो भारतीयों के दिल मै .
हर सुबह
हर शाम
उन सभी के देखे गए सपनो में
संग उनके मुस्कुराता हु मै भी
कभी मासूम बच्चो की नन्ही आखो में
कभी युवा के पंख लगा कर उड़ने के सपनो में
कभी बुजुर्गो की अनुभवी आखो में !
भारत जो ठहरा मै
इक ऐसा देश
जिसने दिया जीरो विश्व को
आधयत्म विश्व को
बहुत सारे सपने
नक्षत्रो की गणना
और न जाने क्या -क्या
ये तो है एतिहासिक भारत
अब मै बात करुगा
आधुनिक भारत की
जिसमे वो सब कुछ शामिल है
जो सिखा है मैंने
अतीत से
वर्तमान में वो सब कुछ
बन कर मेरा हिस्सा
बन रहे है पदचिन्ह वो मेरे भविष्य के
भारतीय संस्कार
रहना चाहू मै मृत्यु संग
धर्मो का बटवारा करके
रहना चाहू मै स्वतंत्र
मेरी तहजीब को ये गवारा नहीं
बेच दू खुदाई सियासतदारो को
भूला दू इन्संनियत कुछ पत्थरो के वास्ते
देकर अपना हिमालय तुमको
पाना चाहू मै खुशहाली
मेरी तहजीब को ये गवारा नहीं
शहीदों के बहे रक्त को अनदेखा करके
पीछा करू सियासती सिपहसलारो का
आज़ादी को जकड कर बेडियों में
पेश करू तुम्हारे महलों में
मेरी तहजीब को ये गवारा नहीं
पश्चिम का अनुकरण करू इस कदर
कि उसे भी न अपना सकू
और अपनी भी भूल जाऊ
मेरी तहजीब को ये गवारा नहीं
आखो में सपने
चाँद तारो को छुने के
दिल में अरमान
सागर को नापने के
लेकिन इन सब के लिए
गिरने पड़ेगे मुझे शव अपनों के
मेरी तहजीब को ये गवारा नहीं
मेरी तहजीब को ये गवारा नहीं